मंगलवार, 20 नवंबर 2012

Nikhil Vohra: HW 18

जब मैं उच्च विद्यालय में पढ़ता था तब मैं बहुत अच्छी फुटबोल खेलता था। मेरी उम्र पंद्रह साल थी लेकिन मैं दुसरे खिलाड़ियों से शरीर में बहुत छोटा था। फुटबोल के मैचों में मुझे बहुत चोटे लगती थी। मेरे माता पिता इस बात का बहुत चिंता करते थे। वे मुझे हर रोज़ फुटबोल छोरने के लिए बोलते थे। जिस दिन फुटबोल के मैच में मेरी टांग टूटी उस दिन से मेरे माता पिता ने फुटबोल खेलने से मुझे मना कर दिया। मैं अपनी चोट से बहुत निराश था। अब मुझको अपने माता पिता के गुस्से से भी डरना पड़ रहा था। मैं अपने मन में बहुत दुखी था। मेरी टांग को ठीक होने में चार महीने लग गये। उस समय में मेरी टीम के खिलाड़ी बहुत याद आते थे। मैंने अपने माता पिता की बात सुनकर फुटबोल खेलना छोर दी। मेरे ख्याल में वह मेरी बहुत बड़ी भूल थी। अब मुझे महसूस होता है कि जिंदिगी में जिस चीज़ के लिए जोश होता है उसे छोरना नहीं चाहिए। फुटबोल खेलने से मुझे बहुत ख़ुशी मिलती थी। टीम के खिलाड़ी मेरे प्रिय दोस्त थे। फुटबोल छोरकर मैंने अपने दोस्तों से दूरी महसूस की। फुटबोल खेलने से मेरी जिंदगी अनुशासन था। फुटबोल के आलावा मैं टेनिस भी खेलता था। पर टेनिस खेलने में मुझे इतना जोश नहीं था। इसलिए मैं अब तक टेनिस इतना अच्छा नहीं खेल सकता। मैंने अपने मन में सोच लिया कि जीवन में मैं अपने दिल की बात सुनूंगा। तबी मैं जीवन में खुश और सफल हो सकता हूँ।


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