अंकिता बधवार
नवम्बर 21, 2012
मेरी भूल
जब
मैं चौदह साल की थी, मैं अपनी माँ और बहन के साथ भारत गयी, मेरे पिता जी नहीं जा पाए
क्योंकि उनको बहुत काम था. भारत में, हम मेरे मामा जी और मामी जी के साथ ठहरे थे. जिस
घर में मेरे मामा जी रहते, वह घर मेरे नाना जी और नानी जी का घर है जहाँ मेरी माँ और
उनके दोनों भाई बचपन से रहे हैं. जब मेरे बड़े मामा जी इंग्लैंड चले गए और मेरी माँ
की शादी हो गयी, उस घर में सिर्फ मेरे छोटे मामा जी रहे गए. जब हम भारत गए, हम उस ही
घर में मेरे मामा जी और मामी जी के साथ ठहरे. उनके घर के पास में एक मंदिर है जहाँ
मेरी माँ अपने परिवार के साथ हमेशा पूजा करने जाया करती थीं. जब उनकी शादी हो गयी,
तब भी वे और मेरे पिता जी उस मंदिर में पूजा करने के लिए जाते थे. अब, जब भी मेरी माँ
भारत जाती हैं, वे उस मंदिर में, भगवन के दर्शन करने, ज़रूर जाती हैं. एक दिन, जब हम
सब भारत गए हुए थे, मेरी माँ मंदिर गयीं. जब में नहाकर तयार हुई, मैं भी मंदिर चली
गयी. मेरी माँ हमारे परिवार के लिए पूजा करवा रही थीं. जब उन्होंने देखा कि मैं वहां
पहुँच गई हूँ, उन्होंने मुझे माता रानी की पूजा के लिए फूलों की माला खरीदने के लिए
कहा.
मैंने
अपनी माँ से पैसे लिए और माला खरीदने के लिए चली गयी. मंदिर के बाहर, एक फूल वाला खड़ा
फूल और मालाएँ बेच रहा था. मैं वहां गयी और फूल वाले से दो गुलाब और चमेली के फूल की
मालाएँ मांगी. फूल वाले ने मुझे दो मालाएँ पकड़ाईं और मुझसे साठ रुपे मांगे. तब मुझे
हिंदी बहुत अच्छे से नहीं आती थी और मुझे पता नहीं था कि साठ रुपे कितने होते हैं.
मेरी माँ ने मुझे 70 रुपे पकडाए थे और मैंने सारे के सारे फूल वाले को दे दिए. जब मैं
मंदिर के अन्दर वापस गयी, मैंने अपनी माँ से पुछा, "साठ रुपे कितने होते हैं?"
उन्होंने बताया कि साठ रुपे 60 रुपे होते हैं. मैंने थोड़ी शर्म के साथ बताया कि मैंने
गलती से फूल वाले को सतर रुपे दे दिए. मेरी माँ ने मुझे फूल वाले से छुटे पैसे वापस
लेने को कहा. जब मैं बहार, फूल वाले के पास, गयी और उससे पैसे मांगे, उसने मुझसे कहा
कि उसने सतर रुपे ही मांगे थे. मैं थोड़े गुस्से से अपनी माँ के पास गयी और उनको बताया
कि फूल वाला पैसे लौटाने से इनकार कर रहा है. मेरी माँ बहार गयी और फूल वाले से बोलीं
कि उसने दूसरी औरत को अभी-अभी मालाएँ साठ रुपे की बेची थीं और अब हमसे दस रुपे ज्यादा
ले रहा है. फूल वाले ने मेरी माँ से झूट कहकर बताया कि उस दूसरी औरत को कोई गलत फैमी
हुई है और उसने मालाएं सतर रुपे की ही दी थीं. इस के बाद, मेरी माँ ने फूल वाले से
कुछ नहीं कहा और वे मंदिर के अन्दर वापस आ गयीं. उन्होंने मुझे मेरी गलती के लिए कुछ
नहीं बोला और वे मेरे से नाराज़ भी नहीं हुईं. उन्होंने मेरे से सिर्फ कहा कि दस रुपे
बहुत ज्यादा पैसे नहीं होते और शायद हमसे ज्यादा, वे पैसे उस आदमी को चाहिए हों. लेकिन
मेरी भूल के वजय से, हमें वे पैसे कभी वापस नहीं मिले.
मैंने
इस गलती से सिखा कि मैं हमेशा अपने बड़ों से पूछकर कोई भी सामान खरीदने जाऊं ताकि मैं
दोबारा किसी को भी ज्यादा पैसे न दूं और जब मुझे कुछ मालूम न हो, तब भी मैं बड़ों से
पूछूं ताकि मुझसे फिर से ऐसी कोई भूल न हो.
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