मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

नीयति - हिन्दुस्तानी औरत के हक

हिन्दुस्तानी औरत बहुत सांस्कृतिक समस्याओं का सामना करती हैं कि सामाजिक उन्नति को अवरोध करता है, सहित पक्षपाती पारिवारिक संहिता, हिंसा, और रोजगार अन्याय. कुछ नियम हैं कि इन समस्याओं को संबोधित करता हैं, लेकिन  सिर्फ नियम सामाजिक रुख़ को नहीं बदल सकते. औरत के लिए पूरा आदर और समानता अभी बहुत दूर हैं.

बहुत परिवार अभी भी पुत्री के बजाय पुत्र को ज़्यादा सम्मान करते हैं. दहेज और शादी का खर्चा के कारण पुत्रियों को अक्सर देखा जाती हैं जैसे ही अर्थशास्त्रीय बोझ. यह समस्या बहुत बड़ी है - भले 1996 में लिंग कानवाई को रोक गया था, अभी भी  छोटे स्त्रैण बेबी को गर्भपात करायी जाती हैं.

यौन हिंसा एक दूसरी बड़ी समस्या है. पिछले साल एक औरत बलात्कार के कारण मर गयी. भारतीय लोगो को बहुत कुपित लगा क्योंकि सरकार यौन हिंसा का सलूक बहुत ज्यादा मृदु है. असल में, पिछले पांच साल में भारतीय राजनीतिक दल 260  प्रत्याशी को नियुक्त किया हैं जिन्हें महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के अभियोग हैं. ये आदमी को जोर से घूँसे नहीं लगाया जाता है.

अब सोनिया गाँधी भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस पार्टी को संचालन कर रही है, लेकिन सब महासभा सदस्य से लगबग सिर्फ 10% औरत हैं. अमरीका में कांग्रेस सदस्य से 17% औरत हैं. इस संख्या भी कम लगता है! मुझे लगता है कि सरकार में अधिक औरत की ज़रूरत है. हिन्दुस्तानी नारी को नुमाइंदगी की ज़रूरत है. अब बहुत ज़्यादा आदमी औरत के लिए निर्णय करते हैं, और लगता है कि वे औरत के हक़ के बारे में चिन्ता नहीं करते हैं.

औरत समान हक को योग्य हैं, और अगर उनको मिले, सारा देश लाभ उठाए. आदमी और नारी को साथ-साथ काम करना चाहिए. जब तक औरत को कुछ अधिकार मिलें तब तक भारत आधुनिक नहीं बना सकेगा और उन्नति नहीं कर सकेगा. 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें