गयाना
, त्रिनिदाद, और कई अन्य देशों में फगुआ मार्च-अप्रैल में मनाया जाता है।  यह त्यौहार बिहार से बाहर निकल गया, और कहा है कि बिहार की होली है।
फगुआ का कथा है कि प्रह्लाद, जो कृष्ण का भक्त था, अपने बुरे पिता को मार डाला।  लोग इस मृत्यु मनाते हैं फ़िर लाल नंगे हुए पानी फ़ैंकते हैं क्योंकि लाल पानी प्रह्लाद के
 पिता
 का
 खून
 मिलाता है।  (पता है कि होली में लोग काफी रंग या चूर्ण इसतेमाल करते हैं, लेकिन मैंने सिर्फ़ लाल पानी देखा है।)
पुराने ज़माने में, सिर्फ़ हिन्दू लोग फगुआ मनाते थे और शायद मुहर्रम, जिस को 'हुसै
' या
 'ताज़िया
' कहते
 थे,
 सबसे
 प्रमुख भारतीय था क्योंकि मुसुलमान
, हिन्दू, और परदेसी मनाते थे।  अंग्रेज़ी सरकार ने यह
 त्यौहार रोक दिया, तो फगुआ ज़्यादा ख़ास
 हो
 गया
।  आज़ादी के बाद राष्ट्र त्यौहार बन गया और आज-कल जब फगुआ आता है तब सब जनता - भारतीय, अफ़्रीकी, चीनी, पुर्रगाली, और कई और लगो - साथ-साथ मनाते हैं।  हर फगुआ, सभी लोग सड़क पर पानी भरीं हूई बालटियाँ और
 तमंचे आ के, दूसरों पर
 आक्रान्त
 करते हैं।  अमीर - ग़रीब इस दिन में समान हैं, मतलब, फगुआ में उँचेवाले
 नीचे गिरते हैं और नीचेवाले ऊपर जाते हैं।
अमरीकी त्यौहारों में लोग अपने दोस्त-रिश्तेदारों को प्रेम करते हैं पर लोग अक्सर अजनबिों
 को नहीं बुलाते
, मतलब
, लोग
 आपस में मनाते हैं और किसी और को नहीं माँगते।  फगुआ में सभी को अजनबिों से खेलना है और कोई सीमा नहीं है।  अमरीका में एक ही त्यौहार भारतीय त्यौहारों से मिलाता है - मार्डी ग्रा (मोटा मंगलवार) - लेकिन त्यौहारों मनाने में अमरीकी लोग अपने दरवाज़े बंद करते हैं मगर भारात के त्यौहारों में सब दरवाज़े खोले हुए हैं।
 
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