गुरुवार, 21 मार्च 2013

सात कढ़ियाँ और अमरीकी रस्म

जो भोजपुरी बोलनेवाले लोग गयाना, त्रिनिदाद, और सूरीनाम में बस आये, वे अवध-बिहार से अपनी परम्पराएँ ले आये।  आज-कल गयाना में ये उन्नीसवीं शताब्दी परम्पराएँ हिन्दू शादियों में दिखाई जाती हेैं।

शादी चार दिन मनाई जाती है।  चूँकि दूसरे दिन में सब पूजा किया जाता है और दुल्हा-दुलहिन सप्तपदी करते हैं इसलिये यह सबसे मुख्य दिन है।   ख़ास शाकाहारी खाना सब मेहमानों को परोसा जाते हैं।  यह खाना 'सात कढ़ियाँ' कहा जाता क्योंकि दुलहन का परिवार सात कढ़ियाँ पकाते हैं - कद्दू, पालक, विलायती फल, चना, बैंगन, अरवी, और मूँग की दाल।  सब लोग फ़र्श या कुर्सियों पर बैठ कर खाते हैं, दुल्हा-दुलहन को सलाम देते हैं, और मज़ा करते हैं।  तीसरे और चारवाँ दिनों में दुल्हा और दुलहन के परिवार अलग-अलग अपनी पार्टी में मानाते हैं, इसलिये 'सात कढ़ियाँ' एक ही परम्परा जिस में दोनों परिवार मिलते हैं।  (शायद पुराने ज़माने में अर्थ था कि दो परिवार पहली बार नमक साथ खाते हैं, लेकिन मुझे सहि मतलब पता नहीं।)  शादी का ख़बर सुन कर, बच्चे इस रस्म का इन्तज़ार करते हैं।  यह रस्म बारह बजे शुरु होती है और खाना लगभग छ: घण्टे परोसा जाता है।

अमरीकी शादियों में खाना भी परोसा जाता है लेकिन मतला मतलब अलग है।  कभी-कभी ख़ास खाना है और शादी का केक ज़रूरी है, लेकिन अकसर जो भी खाना दुल्हा-दुलहन को पसन्द है, वह पकता है।  हर हिन्दू शादी गयाना में 'सात कढ़ियाँ' मिलती हैं।  यह रस्म दोनों परिवारों के लिये हैं, मतलब, यद्यपि दुल्हा-दुलहन पूजा और दूसरी धर्मिक चीज़ें करते हैं, फ़िर उनके रिश्तेदार और दोस्त आपस में मज़ा करते हैं।  अमरीका में दुल्हा-दुलहन पूरी शादी में केन्द्र हैं और सब मेहमानों को दुल्हा-दुलहन का ध्यान से देखना पड़ता है।  'सात कढ़ियाँ' की रस्म बताती है की शादी दो परिवारों के बीच में है।

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