बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

सरत चन्द्र चट्टोपाध्याय


अंकिता बधवार
2 फरवरी 2013
सरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
सरत चन्द्र चट्टोपाध्याय बंगाल के एक बहुत प्रसिद्द लेखक थे. उनका जनम पंद्रह सितम्बर सन् 1876 को हुआ. वे एक बहुत गरीब घर के बेटे थे और उनके परिवार को अक्सर दूसरों से पैसे लेने पड़ते थे. यह बात सरत जी के मन पर बहुत हावी थी और उनकी कई पुस्तकें इस बात से प्रभावित थीं. जब वे छोटे थे, उन्होंने अपनी पढाई "प्यारी पंडित के पाठशाला" में शुरू की. उसके बाद, वे "हूघ्ली ब्रांच हाई स्कूल" भरती करे गए जहाँ उन्होंने ललित कला की पढाई शुरू की. लेकिन, उनको अपनी गरीबी के वजह से अपनी पढाई छोडनी पड़ी. इन्हीं दिनों, वे अपने मामा जी के साथ भागलपुर में रहने लगे जहाँ उन्होंने फिरसे पढाई शुरू की. वे भागलपुर में बीस सालों के लिए रहे और वहां उन्होंने बहुत पुस्तकें लिखीं जिन में से कई उनके अनुभव के बारे में थीं. उनकी पुस्तकों में बंगाली समाज दिखाई गई और वे अक्सर सामाजिक पूर्वसंस्कार और अत्याचार के खिलाफ लिखते थे. उनकी पहली पुस्तक "मंदिर" थी. अपने माता-पिता के मृत्यु के बाद, उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा छोड़ दी और वे बर्मा चले गए सन् 1903 में. वहां उन्होंने एक सरकारी दफ्तर में मुंशी की नौकरी शुरू कर ली. उन्होंने वहां बहुत देर काम नहीं किया और जल्दी भारत लौट आये. सन् 1904 में, उनको इनाम मिला एक कहानी के लिए. सन् 1914 से 1917 तक, उन्होंने अपनी सबसे प्रसिद्द पुस्तकें लिखीं. उनका नाम है परिणीता और देवदास. इन दोनों पुस्तकों से, सरत जी की ख्याति बाद गई. इसके बाद भी उन्होंने बहुत कहानियां लिखीं जो बहुत प्रसिद्द हो गईं. भले उनकी पुस्तकें बहुत प्रसिद्द थीं, लेकिंग वे बहुत संकोची और निजी आदमी थे. उनकी मृत्यु 1938 में कोलकत्ता में लीवर कैंसर से हो गई. अभी भी उनके नाम को रोशन किया जाता है. यथा उनकी पुस्तकें परिणीता और देवदास को फिल्मों बना दिया गया है.

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